मंगलवार, 10 मार्च 2015

BBC Documentary INDIA'S DAUGHTER

निर्भया कांड पर BBC द्वारा बनाई गई डॉक्यूमेंट्री INDIIA'S DAUGHTER देखी। नाम सार्थक था। फिर से 16 दिसंबर 2012 की घटनाएं याद आ गई और घाव गहरे हो गए। अपराधियों ने इंसानियत के साथ हैवानियत की भी हदें पार कर दी थी। घटना की याद आते ही रूह तक काँप जाती है। इस घटना को झेलने वाली लड़की पर थोड़े ही समय के  लिए क्या बीती होगी कल्पना भी नहीं होती। आखिरकार उसने मौत को गले लगा ही लिया।  और छोड़ गयी एक बहस। फिल में इस घटना को तूफ़ान कहा गया है जो सही भी है जिसने जाने के बाद कई सारे प्रश्नों को छोड़कर चली गई। मन क्षुब्ध था नेताओं तथा समाज के अग्रणी लोगों के भाषणों से। 
मुलायम सिंह की बयान 'लड़कों से गलतियां हो जाती है' काफी शर्मनाक था।  इसके साथ कई नेताओं तथा धर्म के ठेकेदारों का भी बयान लज्जास्पद था। धर्म को भारत का आत्मा कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा, क्योंकि यहाँ के लगभग 99.9% लोग धर्म को मानते है और धर्म गुरुओं से प्रभावित  होते है। ऐसे में उनकी जिम्मेदारियां और अधिक बढ़ जाती है। उल्टा बयान न देकर उन्हें समाज को सही मार्गदर्शन देना चाहिए। कोई भी कानून अपराध को नहीं रोक सकता यदि रोक सकता है तो उसका सोच। हमें अपनी सोच बदलनी होगी। 
                                                               फिल्म में अपराधियों तथा वकीलों का जो बयान दिखाया गया है वह बहुत ही शर्मनाक है। अपराधी मुकेश का कहना है कि यदि किसी लड़की के साथ बलात्कार हो तो उसे चुपचाप सह लेना चाहिए विरोध नहीं करना चाहिए। ये कैसा बयान है ? कोई लड़की अपनी इज्जत लूटते हुए कैसे चुचाप सह सकती है ! 

सोमवार, 19 जनवरी 2015

ख्वाब


ख्वाबों की एक तस्वीर बनाई है मैंने I
स्वर्ग से भी सुन्दर दुनिया बसाई है मैंने I
ख़ूबसूरत आशियाने की कल्पना की है मैंने I
एक सच्चे हमराही की तमन्ना राखी है मैंने I
उनके चेहरे पे मुसर्रत देखी है मैंने I
अधरों पे तबस्सुम बिखेरी है मैंने I
कयामत-ए-हुश्न को आलिंगन में लिया है मैंने I
नूरजहाँ के बिम्ब को बाहुपाश में समेटा है मैंने I

प्रश्नचिह्न हूँ ...............?

पहले लड़कियां इस दुनिया में आने के लिए तत्पर रहती थी तो आज की हालात को देखते हुए एक लड़की अपनी जन्म देने वाली मान से कुछ प्रश्न पूछती है................
(यह कविता घटना दिल्ली गैंगरेप ने लिखने पर मजबूर कर दिया)
माँ........!
नाराज हूँ तुमसे
जन्म लेते हीं 
मार क्यों नहीं दिया तूने...?
जब जानती थी !
मेरा कोई मूल्य नहीं
लोग
रौंद डालते है स्त्रियों को
ठीक उसी तरह
हाथी अपने मद में
रौंद डालता है फसलों को !
तुम भी तो स्वतंत्र नही
सिर्फ जीवन जी रही हो
घर में भी
अपने अस्तित्व से लड़ रही हो
इतना सब कुछ जानते हुए
मेरे बारे में क्यों नहीं सोचा तूने.?

मैं भी लड़की हूँ !
बड़ी बेरहमी से
इन दरिंदो ने
कुचला है मुझे
मुझे देखकर
अब जी सकोगी तुम.?
मैं भी तो नहीं जी सकुंगी
नहीं ! समाज नहीं जीने देगी
अरमान भी तो मर चुके है
जीकर अब क्या होगा..?
मैं भी एक दामिनी हूँ................!